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अल्लाह तआला को ऊपर वाला बोलना कैसा है

_*अल्लाह तआला को ऊपर वाला बोलना कैसा*_
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_*अल्लाह तआला को ऊपर वाला बोलना कैसा और भी कुछ ज़रूरी मसाऐल*_

*_कुछ लोग अल्लाह तआला का नाम लेने के बाजाऐ उसको ऊपर वाला बोलते हैं ये निहायत गलत बात है बल्किह अगर ये अक़ीदह रख कर ये लफ्ज़ बोले कि अल्लाह तआला ऊपर है तो ऐ कुफ्र है कियोंकि अल्लाह की ज़ात ऊपर नीचे आगे पीछे दाहने बाऐं तमाम सिम्तों हर मकान और हर ज़मान से पाक है बरतर व बाला है- पूरब पच्छिम उत्तर दख्खिन ऊपर नीचे दाहने बाऐं आगे पीछे ज़मान  व मकान को उसी ने पैदा किया है तो अल्लाह के लिऐ ये नहीं बोला जा सकता कि वह ऊपर है या नीचे है पूरब में है पच्छिम में है कियोंकि जब उसने इन चीज़ों को पैदा नहीं किया था वह तब भी था, कहां था और किया था उसकी हक़ीक़त को उसके अलावह कोई नहीं जानता, अब अगर कोई कहे कि अल्लाह तआला अर्श पर है तो उस से पूछो कि जब उसने अर्श को पैदा नहीं किया था तो वह कहां था? यूंहि अगर कोई कहे कि अल्लाह तआला ऊपर है तो उस से पूछो कि ऊपर को पैदा करने से पहले वह कहां था?_*

_*📕 गलत फहमिया और उनकी इस्लाह, सफह 15*_

*_हां अगर कोई शख्स अल्लाह तआला को ऊपर वाला इस ख्याल से कहे कि वह सबसे बुलन्द व बाला है और उसका मर्तबा सबसे ऊपर है तो ये कुफ्र नहीं है लेकिन फिर भी अल्लाह तआला के लिये एैसे अल्फाज़ बोलना सह़ी नहीं जिन से कुफ्र का शुबह हो, अल्लाह तआला को ऊपर वाला कहना बहर हाल मना है जिस से बचना ज़रूरी है_*

_*📕 गलत फहमियां और उनकी इस्लाह 15*_

*_कुछ लोग अल्लाह तआला को, :अल्लाह: कहने के बजाऐ सिर्फ -मालिक - कहते हैं कि मालिक ने जो चाहा तो ऐसा होजायेगा या मालिक जो करेगा वह होगा वगैरह वगैरह ये भी अच्छा और इस्लामी तरीक़ा नहीं - सबसे ज़्यादा सीधी सच्ची अच्छी बात ये है कि अल्लाह को  अल्लाह ही कहा जाऐ कियोंकि उसका नाम लेना इबादत है और उसका ज़िक्र करना ही इन्सान की ज़िन्दगी का सबसे बडा मक़सद और मुसलमान की पहचान है यानि यूं कहना चाहिये कि अल्लाह जो चाहेगा वह होगा अल्लाह जो करेगा वह होगा_*

_*📕 गलत फहमिया और उनकी इस्लाह, सफह 16*_

*_बाज़ लोग कहते हैं कि ऊपर वाला जैसा चाहेगा वैसा होगा और कहते हैं कि ऊपर अल्लाह हा नीचे तुम हो या इस तरह कहते हैं कि ऊपर अल्लाह है नीचे पन्च हैं- ऐ सब जुम्ले गुमराही के हैं मसलमानों को इनसे बचना निहायत ज़रूरी है_*

_*📕अनवारे शरीअत, सफह 8*_

 *_कुछ लोग अल्लाह तआला को - अल्लाह मियां- कहते हैं  तो ये भी समझ लें कि अल्लाह मियां कहना मना है कियोंकि लफ्ज़ -मियां- के तीन माना हैं एक मौला दूसरा शौहर तीसरा ज़िना का दलाल, तो एक माना सही है और बाद वाले दो माना बहुत गलत है तो अल्लाह के लिऐ लफ्जे मियां नहीं बोलना चाहिऐ_*

_*📕 अल्मलफूज़, हिस्सा 1, सफह 116*_

*_कुछ लोग अल्लाह तआला को बोलते हैं कि अल्लाह हर जगह हाज़िर व नाज़िर है तो अल्लाह तआला को हर जगह हाज़िर व नाज़िर भी नहीं कहना चाहिऐ कियोंकि अल्लाह तआला हर जगह से पाक है ये लफ्ज़ बहुत बुरे माना का अह़तमाल रखता है इस से बचना लाज़िम है_*

_*📕फतावा रज़विया, जिल्द 6, सफह 132*_
_*📕मख्ज़ने मआलूमात, सफह 21*_

*_अल्लाह तआला को उनहीं अल्फाज़ से पुकार सकते हैं जिनका इस्तेमाल क़ुरआन व हदीस या इजमाऐ उम्मत से साबित है जैसे लफ्ज़ -खुदा'- कि इसका इस्तेमाल अगरचे क़ुरआन ह़ादीस में नहीं है लेकिन इजमाऐ उम्मत से साबित है तो लफ्ज़े खुदा बोल सकते हैं_*

_*📕खाज़िन, जिल्द 2, सफह 262*_

*_हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैही वसल्लम ने अपने सर की आंखों से रबका दीदार किया है यानि रब को देखा है एक बार सिदरतुल मुन्तहा पर और एक बार अर्शे आज़म पर_*

_*📕 फतावा ह़दीसिया, सफह 108*_
_*📕 मवाहिबुल लदुन्निया, जिल्द 2, सफह 35*_

*_और आखिरत यानि हश्र के मैदान में मोमिन व काफिर सबको दीदार होगा लेकिन मोमिनीन को रह़मो करम और काफिरीन को क़हरो गज़ब की ह़ालत में फिर उसके बाद कुफ्फार हमेशा के लिऐ इस नेअमत से महरूम कर दिये जायेंगे_*

_*📕 तकमीलुल ईमान, सफह 6*_
_*📕 शरह फिक़्ह अकबर बह़रूल उलूम, सफह 66*_

*_अल्लाह तआला के नामों की कोई गिन्ती और शुमार नहीं है कि उसकी शान गैर महदूद है मगर इमाम राज़ी ने अपनी किताब तफसीरे कबीर में पांच हज़ार नामों का तज़किरह किया है- जिन में से क़ुरआन में एक हज़ार, तौरात में एक हज़ार, इन्जील में एक हज़ार ज़बूर में एक हज़ार और लौहे मह़फूज़ में एक हज़ार हैं_*

_*📕 तफसीरे कबीर, जिल्द 1, सफह 119*_
_*📕अह़कामे शरीअत, हिस्सा 2, सफह 157*_
_*📕 मख्ज़ने मालूमात, सफह 20*_

*_तमाम नामों में लफ्ज़,, अल्लाह,, ज़्यादा मशहूर है_*

_*📕 खाज़िन, जिल्द 2, सफह 262*_

*_अल्लाह तआला के बारे में ये अक़ीदह रखना चाहिये कि अल्लाह तआला एक है उसका कोई शरीक नहीं आसमान ज़मीन और सारी मखलूक़ात का पैदा करने वाला वही है- वही इबादत का मसतहिक़ है दूसरा कोई मुसतहिक़ इबादत नहीं ना वह किसी का बाप है ना बेटा ना उसकी बीबी ना उसके कोई औलाद, वही सबको रोज़ी देता है अमीरी गरीबी और इज़्ज़त व ज़िल्लत सब उसके अख्तियार में है जिसे चाहता है इज़्ज़त देता है और जिसे चाहता है ज़िल्लत देता है उसका हर काम ह़िकमत है बन्दों की समझ में आये या ना आये वह कमाल व खूबी वाला है झूठ, दगा, ख्यानत, ज़ुल्म, जहल वगैरह हर एैब से पाक है उसके लिये किसी एैब का मानना कुफ्र है लिहाज़ा जो ऐ अक़ीदा रखे कि खुदा झूठ बोल सकता है वह गुमराह व बद मज़हब है_*

_*📕 बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफह 2*_
_*📕 हमारा इस्लाम, हिस्सा 2, सफह 46*_
_*📕 क़ानूने शरीअत, हिस्सा 1, सफह 13*_
_*📕 अनवारे शरीअत, सफह 7*_
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